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न्यूनतम समर्थन मूल्य -MSP

पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

भारत के साथ दुनिया भर में गेहूं खाना बनाने का एक मुख्य स्रोत है। अगर वैश्विक हालातों पर गौर करें, तो इन दिनों दुनिया भर में गेहूं की मांग तेजी से बढ़ी है। जिसके कारण गेहूं के दामों में तेजी से इजाफा देखने को मिला है। दरअसल, गेहूं का उत्पादन करने वाले दो सबसे बड़े देश युद्ध की मार झेल रहे हैं, जिसके कारण दुनिया भर में गेहूं का निर्यात प्रभावित हुआ है। अगर मात्रा की बात की जाए तो दुनिया भर में निर्यात होने वाले गेहूं का एक तिहाई रूस और यूक्रेन मिलकर निर्यात करते हैं। पिछले दिनों दुनिया में गेहूं का निर्यात बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, जिसके कारण बहुत सारे देश भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं।



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दुनिया में घटती हुई गेहूं की आपूर्ति के कारण बहुत सारे देश गेहूं खरीदने के लिए भारत की तरफ देख रहे थे। लेकिन उन्हें इस मोर्चे पर निराशा हाथ लगी है। क्योंकि भारत में इस बार ज्यादा गर्मी पड़ने के कारण गेहूं की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई थी। अन्य सालों की अपेक्षा इस साल देश में गेहूं का उत्पादन लगभग 40 प्रतिशत कम हुआ था। जिसके बाद भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। कृषि विभाग के अधिकारियों ने इस साल रबी के सीजन में एक बार फिर से गेहूं के बम्पर उत्पादन की संभावना जताई है।



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आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के डायरेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा है, कि इस साल देश में पिछले साल के मुकाबले 50 लाख टन ज्यादा गेहूं के उत्पादन की संभावना है। क्योंकि इस साल गेहूं के रकबे में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही इस साल किसानों ने गेहूं के ऐसे बीजों का इस्तेमाल किया है, जो ज्यादा गर्मी में भी भारी उत्पादन दे सकते हैं। आईसीएआरआईआईडब्लूबीआर गेहूं की फसल के उत्पादन एवं रिसर्च के लिए शीर्ष संस्था है। अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया है, कि तेज गर्मी से भारत में अब गेहूं की फसल प्रभावित होने लगी है, जिससे गेहूं के उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।

इस साल देश में इतना बढ़ सकता है गेहूं का उत्पादन

कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि, इस साल भारत में लगभग 11.2 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हो सकता है। जो पिछले साल हुए उत्पादन से लगभग 50 लाख टन ज्यादा है। इसके साथ ही अधिकारियों ने बताया कि इस साल किसानों ने गेहूं की डीबीडब्लू 187, डीबीडब्लू 303, डीबीडब्लू 222, डीबीडब्लू 327 और डीबीडब्लू 332 किस्मों की बुवाई की है। जो ज्यादा उपज देने में सक्षम है, साथ ही गेहूं की ये किस्में अधिक तापमान को सहन करने में सक्षम हैं।



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इसके साथ ही अगर गेहूं के रकबे की बात करें, तो इस साल गेहूं की बुवाई 211.62 लाख हेक्टेयर में हुई है। जबकि पिछले साल गेहूं 200.85 लाख हेक्टेयर में बोया गया था। इस तरह से पिछली साल की अपेक्षा गेहूं के रकबे में 5.36 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि इस साल की रबी की फसल के दौरान राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश में गेहूं के रकबे में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी हुई है।

एमएसपी से ज्यादा मिल रहे हैं गेहूं के दाम

अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए इस साल गेहूं के दामों में भारी तेजी देखने को मिल रही है। बाजार में गेहूं एमएसपी से 30 से 40 प्रतिशत ज्यादा दामों पर बिक रहा है। अगर वर्तमान बाजार भाव की बात करें, तो बाजार में गेहूं 30 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। इसके उलट भारत सरकार द्वारा घोषित गेहूं का समर्थन मूल्य 20.15 रुपये प्रति किलो है। बाजार में उच्च भाव के कारण इस साल सरकार अपने लक्ष्य के अनुसार गेहूं की खरीदी नहीं कर पाई है। किसानों ने अपने गेहूं को समर्थन मूल्य पर सरकार को बेचने की अपेक्षा खुले बाजार में बेचना ज्यादा उचित समझा है। अगर इस साल एक बार फिर से गेहूं की बम्पर पैदावार होती है, तो देश में गेहूं की सप्लाई पटरी पर आ सकती है। साथ ही गेहूं के दामों में भी कमी देखने को मिल सकती है।

दिवाली पर केंद्र सरकार ने रबी की फसलों की एम एस पी दर बढ़ाकर किसानों को दिया तोहफा

दिवाली पर केंद्र सरकार ने रबी की फसलों की एम एस पी दर बढ़ाकर किसानों को दिया तोहफा

दिवाली पर केंद्र सरकार ने दाल एवं गेंहू सहित और भी छह फसलों की एम एस पी (MSP) में वृध्दि कर दी है। गेंहू सहित समस्त रबी फसलों की एम एस पी में ३ से ९% बढ़ोतरी की पहल कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने की थी। हाल ही में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की १२ वीं किस्त भी किसानों के खातों में ट्रांसफर करदी गयी है, इसके साथ ही किसानों की बेहतरी के लिए केंद्र सरकार ने एम एस पी की दर भी बढ़ा दी है। यह किसानों के लिए दोहरा तोहफा दिया गया है, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की उर्वरकों से सम्बंधित समस्या के निराकरण के लिए ६०० समृद्ध उर्वरक केंद्र स्थापित भी किये हैं, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री जी ने एग्री स्टार्ट अप कॉनक्लेव और किसान सम्मेलन (Agri Startup Conclave & Kisan Sammelan) के दौरान की थी। बीते दिनों प्रचंड बारिश के चलते किसानों की फसल चौपट हो चुकी है, जिसके लिए सरकार किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने का आश्वासन भी दे चुकी है। केंद्र सरकार ने किसानों के हित में कई सारी योजनायें चला रखी हैं, जिनसे किसान काफी हद तक लाभ उठा सकते हैं।

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एम एस पी किस प्रकार निर्धारित होती है ?

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) केंद्र सरकार के निर्देशानुसार किसानों द्वारा फसल पर व्यय एवं फसल के अंतिम छोर तक पहुँचने तक समस्त खर्च संज्ञान में रखने के उपरांत ही न्यूनतम समर्थन मूल्य निश्चित किया जाता है। इसे कृषि लागत एवं मूल्य आयोग(Commission for Agricultural Costs and Prices (CACP)) द्वारा निर्धारित किया जाता है, लेकिन गन्ने का समर्थन मूल्य सिर्फ गन्ना आयोग द्वारा निर्धारित किया जाता है। गन्ने को छोड़कर अन्य रबी एवं खरीफ की फसलों की एम एस पी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा निर्धारित की जाती हैं। गेंहू सहित अन्य छह रबी की फसलों में ३ से ९ प्रतिशत तक न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की गयी है।

किस फसल पर कितनी एम एस पी बढ़ी है ?

केंद्र सरकार द्वारा रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के फैसले के बाद गेंहू के मूल्य में ११० रुपये, जौ में १००, चना में १०५, मसूर में ५०० एवं सरसों में ४०० रूपये की बढ़ोत्तरी हुयी है। पूर्व में केंद्र सरकार द्वारा खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की गयी है, धान की बिक्री का समय आ गया है। किसानों को अपनी लागत के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल पायेगा एवं अन्य भी खरीफ की फसल जैसे दाल, तिल इत्यादि का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया जा चुका है। किसान दिवाली से पूर्व न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि होने से बेहद खुश हैं।

किसानों के लिए किस तरह सहायक साबित होती है एम एस पी में वृद्धि ?

आये दिन मंहगाई में वृद्धि होने से किसानों की लागत भी बढ़ जाती है क्योंकि उनको फसल तैयार करने के लिए बीज, सिंचाई, कीटनाशक एवं उर्वरकों के साथ साथ जुताई बुवाई में भी काफी व्यय करना पड़ता है, जिसके चलते किसान को उसके द्वारा फसल में लगायी गयी लागत एवं मुनाफा लेने के लिए फसल के मूल्य में वृद्धि होना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए केंद्र सरकार की सहमती से कृषि लागत एवं मूल्य आयोग फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करती है, जिससे किसानों को उनकी लागत के साथ साथ बेहतर मुनाफा भी प्राप्त हो सके।

केंद्र ने दिया किसानों को फसल के उचित मूल्य का उपहार

केंद्र ने दिया किसानों को फसल के उचित मूल्य का उपहार

आज सरकार ने किसानों को दिवाली का गिफ्ट देते हुए रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी का ऐलान किया है। इसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने मीडिया के साथ साझा की। अनुराग ठाकुर ने बताया कि सरकार ने रबी की 6 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 3 से लेकर 9 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी की है। नई फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी जारी कर दिया गया है। अनुराग ठाकुर ने बताया कि गेहूं की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 110 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है, जिसके बाद अब गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2015 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2125 रूपये प्रति क्विंटल हो गया है। इसी प्रकार से जौ के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी 100 रुपये की वृद्धि की गई है। वृद्धि के बाद अब जौ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1635 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 1735 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। इन फसलों के साथ ही चने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 105 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है। अब चने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5230 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 5335 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। चौथी फसल है मसूर, जिसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की गई है। मसूर के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 500 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है, जिसके बाद अब मसूर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5500 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 6,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।


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इस लिस्ट में पांचवां नाम है सरसों का, जिसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में 400 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है। अब न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से सरसों 5050 रुपये प्रति क्विंटल की जगह 5450 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिकेगा। सरसों के साथ ही सूरजमुखी के दाम में 209 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। अब सूरजमुखी 5,441 रुपये प्रति क्विंटल की जगह पर 5,650 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिकेगा। इसके पहले खरीफ के सीजन को देखते हुए सरकार ने खरीफ की फसलों में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का ऐलान किया था। जिसके कारण सरकार का न्यूनतम समर्थन मूल्य का बजट बढ़कर 1 लाख 26 हजार करोड़ रुपये हो गया था। खरीफ की फसल में सरकार ने 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की थी। केंद्र सरकार ने धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की थी। जिसके बाद धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,040 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था। धान के साथ ही तिल, तुअर और उड़द जैसी फसलों में भी 300 से लेकर 500 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई थी। अगर हम पिछले साल की रबी फसलों की बात करें तो पिछले साल भी सरकार ने सरसों और मसूर में सबसे ज्यादा 400-400 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की थी। इनके अलावा गेहूं, जौ, चना, मसूर, सरसों और सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की गई थी। पिछले साल सबसे कम बढ़ोत्तरी जौ के समर्थन मूल्य में की गई थी। यह मात्र 35 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी थी। पिछले साल जौ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1635 रुपये प्रति क्विंटल था। जौ के साथ चने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 130 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई थी।
आगामी बजट से पूर्व वित्त मंत्री ने किसानों के साथ बैठक की

आगामी बजट से पूर्व वित्त मंत्री ने किसानों के साथ बैठक की

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण १ फरवरी, २०२३ को अगला आम बजट प्रस्तुत करेंगी। बजट की तैयारियों के लिए वित्त मंत्री फिलहाल बजट से पहले ही बैठकें कर रही हैं, जिसमें उन्होंने सभी किसान संगठनों व समतियों से उनकी मांगे व सुझाव लिए हैं।

क्या कहा किसानों ने बैठक के दौरान

सामान्य बजट २०२३-२४ हेतु अपनी विश लिस्ट में भारत कृषक समाज के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने मांग की कि सरकार को जहां आयातित कमोडिटी की देश में आने का खर्च न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम है, ऐसे में उपज के आयात को स्वीकृति नहीं देनी चाहिए। बतादें कि, उन्होंने केंद्र सरकार से कृषि क्षेत्र में मानव संसाधन उन्नति एवं प्रगति के विकास पर अधिक जोर देने का निवेदन किया है। अजय वीर जाखड़ द्वारा किसानों को उचित व उच्चतम मूल्य प्राप्त करने हेतु सामर्ध्यवान बनाने के लिए खेतों से स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिट का दुनियाभर के स्तर पर व्यापार करने हेतु स्वीकृति के संबंध में वकालत की है ।


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बैठक में मौजूद कंसोर्टियम ऑफ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन (सीआईएफए) के अध्यक्ष रघुनाथ दादा पाटिल ने बताया कि, टूटे चावल एवं गेंहू की तरह कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगाने की वजह से किसानों की आमदनी पर विपरीत असर हुआ है। पाटिल ने कहा कि बैठक के दर्मियान उनके द्वारा यह सलाह दी गयी कि, सरकार को कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक नहीं लगानी चाहिए। पाटिल जी के हिसाब से निर्यात के माध्यम से भारत को विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायता प्राप्त होगी। भारत ने घरेलू आपूर्ति में बढ़ोत्तरी करने एवं महंगाई दर को रोकने के लिए टूटे चावल व गेंहू के निर्यात को रोक दिया गया है। खाद्य तेलों के आयात पर भारत की निर्भरता में घटोत्तरी हेतु पाटिल जी ने सलाह दी कि सूरजमुखी, मूंगफली और सोयाबीन के गृह उत्पादन में वृद्धि पर अधिक जोर देना चाहिए। १ फरवरी, २०२३ को आगामी आम बजट प्रस्तुत करने जा रही हैं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण।

ये लोग रहे बैठक में मौजूद

बतादें कि बैठक के दौरान प्रदेश अध्यक्ष, राज्य फल सब्जियां और फूल उत्पादक संघ (हिमाचल); और जेफरी रेबेलो, अध्यक्ष, यूपीएएसआई, (तमिलनाडु) वीरेन के खोना, सचिव, अखिल भारतीय मसाला निर्यातक फोरम, (केरल); ए एस नैन, निदेशक, गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, (उत्तराखंड); हरीश चौहान, भी मौजूद रहे। साथ ही, दक्षिण भारतीय गन्ना किसान संघ (एसआईएसएफए), तमिलनाडु के अध्यक्ष, वी राजकुमार, इफको के संयुक्त प्रबंध निदेशक – राकेश कपूर, भारतीय किसान संघ के महासचिव – मोहिनी मोहन मिश्रा एवं जैविक कृषि के लिए अंतरराष्ट्रीय क्षमता केंद्र (कर्नाटक) के कार्यकारी निदेशक – मनोज कुमार मेनन, जम्मू-कश्मीर फल और सब्जियां प्रसंस्करण और एकीकृत शीत भंडारण श्रृंखला संघ के अध्यक्ष – माजिद ए वफाई, एसोसिएटेड टी एंड एग्रो मैनेजमेंट सर्विसेज (असम) की कार्यकारी निदेशक – नंदिता शर्मा ने भी अपने विचार व सलाह साझा की।
खुशखबरी: २०० करोड़ के निवेश से इस राज्य में बनने जा रहा है अनुसंधान केंद्र

खुशखबरी: २०० करोड़ के निवेश से इस राज्य में बनने जा रहा है अनुसंधान केंद्र

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आयुष मंत्रालय बदरवाह में अनुसंधान केंद्र निर्माण हेतु २०० करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं। यह जम्मू-कश्मीर के कृषकों के लिए हर्ष की बात है। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया है, कि जम्मू-कश्मीर में कृषि-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप का केंद्र बनने के असीमित अवसर हैं। इसी संबंध में उनका यह भी कहना है, कि जम्मू में उत्पादित होने वाले बांसों का प्रयोग अगरबत्ती समेत विभिन्न प्रकार के आवश्यक उत्पादों के निर्माण हेतु हो सकता है। इस वजह से बांस की खेती के क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी तो होगी ही साथ में किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि स्ट्रॉबेरी व सेब एवं ऐसे अन्य फलों की जीवनावधि को कोल्ड-चेन की उत्तम व्यवस्था के जरिये बढ़ाया जाना संभव है।

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उन्होंने कहा कि जम्मू और कश्मीर में गैर-इमारती वन उत्पाद (NTFP) में आने वाले पौधे जिनमें मशरूम, गुच्ची एवं अन्य औषधीय पौधे काफी संख्या में मिल जाते हैं। चिनाब घाटी अथवा पीर पंजाल क्षेत्र (राजौरी, पुंछ) उच्च गुणवत्ता वाले शहद एवं एनटीएफपी का केंद्र है। दरअसल, इनकी उचित तरीके से विपणन नहीं हो पाती है। केंद्रीय मंत्री ने बताया है, कि प्रदेश के जम्मू-कश्मीर औषधीय पादप बोर्ड एवं वन विभाग को साम्मिलित किया, क्योंकि एक सहायक पद्धति के जरिये से उत्पादन, बिक्री और विपणन की आवश्यकता है। 

कृषि संबंधित औघोगिक क्रांति से बेहद मुनाफा हो सकता है

उपरोक्त में जैसा बताया गया है, कि डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आयुष मंत्रालय बदरवाह में अनुसंधान केंद्र निर्माण हेतु २०० करोड़ रुपये स्वीकृत हो चुके हैं।. इसी दौरान मंत्री का कहना है, कि कृषि, बागवानी एवं ग्रामीण विकास की भाँति अनेकों प्रगतिशील क्षेत्रों में कार्यरत सरकारी संगठनों हेतु निरंतर सहायता की आवश्यकता है। साथ ही उनका कहना है, कि शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय (SKUAST) कश्मीर, को उद्यमिता विकास संस्थान (EDI) के साथ मिलकर भेड़पालन व पशुपालन विभागों को सहायता प्रदान करनी चाहिए। 

किसानों को (एफपीओ) व सहकारी समितियों के जरिये संस्थागत होना चाहिए

बतादें कि, मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है, कि किसानों को सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से संस्थागत होना महत्वपूर्ण है। कृषि एवं बागवानी क्षेत्रों में स्थानीय मांगो पर ध्यान केंद्रित हो, एवं ऐैसे नौजवानों को तैयार करना होगा जिनकी इस क्षेत्र में कार्य करने की रूचि हो। साथ ही, एनजीओ किसानों को फसल बीमा अर्जन हेतु संवेदनशील बनाना अति आवश्यक है, क्योंकि इसकी जम्मू और कश्मीर में बेहद जरूरत है। केंद्रीय मंत्री के अनुसार, इस प्रकार के सरकारी संगठनों द्वारा समर्थन हेतु कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में कार्यशील प्रमुख गैर सरकारी संगठनों व अनुसंधान संस्थानों का सम्मिलित होना अति आवश्यक है। बाजार में अच्छी पकड़ हेतु, अधिकारियों द्वारा कोई ऐसी नीति जारी होनी जरूरी है, जो स्थानीय कृषि और बागवानी उत्पादों जैसे अखरोट, सेब व राजमा आदि के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की जिम्मेदारी उठा सके।

केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलों की ताबड़तोड़ खरीददारी कर रही है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने जानकारी दी है, कि अब तक केंद्र सरकार 24,000 टन मूंग खरीद चुकी है। इसके साथ ही सरकार आगामी दिनों में 4,00,000 टन खरीफ मूंग की खरीददारी करने जा रही है। इसके लिए सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार यह 4,00,000 टन खरीफ मूंग उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत 10 राज्यों के किसानों से खरीदेगी।

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अधिकारियों ने बताया है, कि मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) को पूरी तरह से केंद्र सरकार का कृषि मंत्रालय नियंत्रित करता है। कृषि मंत्रालय जब देखता है, कि बाजार में फसलों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गिर गए हैं, तब कृषि मंत्रालय मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलें खरीदना प्रारंभ कर देता है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचने पर मजबूर न होना पड़े। यह खरीददारी कृषि मंत्रालय के आधीन आने वाला भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) करता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल अभी तक 24,000 टन मूंग की खरीदी हो चुकी है, जिसमें से 19,000 टन अकेले कर्नाटक के किसानों से खरीदी गई है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है, जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल पाए। इसके लिए खरीदी प्रक्रिया की हर राज्य में सघनता से जांच की जा रही है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को बेचने पर किसी भी प्रकार की परेशानी न होने पाए।

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बकौल कृषि मंत्रालय, मूंग के अलावा 2022-23 खरीफ सत्र में उगाई गई 2,94,000 टन उड़द और 14 लाख टन मूंगफली की भी खरीददारी की जाएगी। कृषि मंत्रालय ने इसकी स्वीकृति भी भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) को भेज दी है। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने कृषि मंत्रालय को अपने जवाब में बताया है, कि इस साल अभी तक उड़द और मूंगफली की खरीद नहीं हो सकी है। क्योंकि अभी भी बाजार में इन दोनों फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत ज्यादा ऊपर चल रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने अभी तक जिन फसलों की खरीद की है। उन्हें कृषि मंत्रालय ने राज्य सरकारों को देना शुरू कर दिया है, ताकि इन फसलों को पीडीएस के माध्यम से खपाया जा सके। इसी तरह अगर खरीफ की फसलों के अंतर्गत आने वाले धान की फसल की बात करें, तो अभी तक भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) के माध्यम से सरकार ने 306.06 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की है। जबकि सरकार का लक्ष्य 775.72 लाख टन धान खरीदने का है।

केंद्र सरकार ने 'खोपरा' नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दी मंजूरी

केंद्र सरकार ने 'खोपरा' नारियल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को दी मंजूरी

भारत सरकार देश के किसानों की आय को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में राज्य तथा केंद्र सरकारें आए दिन कृषि नीति और कानून में किसान हितैषी बदलाव करती रहती हैं। ताकि किसानों को फायदा हो और वह अपने पैरों पर खड़ी रह सकें। हाल ही में भारत सरकार की कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए मिलिंग खोपरा (नारियल) के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 270 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इसी के साथ सरकार ने घोषणा की है, कि अब बॉल खोपरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी 750 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ोत्तरी की गई है। सरकार की इस घोषणा से नारियल उत्पादक किसानों को राहत मिलने की उम्मीद है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी किए जानें से किसान भाई नारियल की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे। जिससे नारियल की खेती का रकबा बढ़ाने में मदद मिलेगी। अगर इस खेती से किसानों को अच्छी आमदनी होने लगती है, तो नारियल का प्रसंस्करण बिजनेस को बढ़ाने में भी किसान आगे आ सकते हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के बाद अब इस कीमत पर बिकेगा नारियल

सरकार ने कहा है, कि नारियल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के बाद अब मिलिंग खोपरा 10,860 रुपये क्विंटल के भाव पर बिकेगा। नारियल की इस किस्म पर 270 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। जब कि बॉल खोपरा नारियल 11,750 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिकेगा। इस नारियल पर 750 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य के बढ़ने से नारियल के किसानों का मुनाफा बढ़ने की पूरी संभावना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने कहा है, कि नारियल की कीमतों का निर्धारण कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की सिफारिश पर किया गया है। साथ ही, कीमतों के निर्धारण में प्रमुख नारियल उत्पादक राज्यों के सुझावों पर भी गौर किया गया है। नारियल की खेती गेहूं, चावल और सब्जियों से ज्यादा मुनाफे वाली खेती होती है। यदि किसान वैज्ञानिक तकनीकों के जरिए नारियल की खेती करें, तो इस खेती से किसान बंपर कमाई कर सकते हैं। नारियल की खेती में एक बार रोपाई करने के बाद आगामी 80 सालों तक इसकी फसल ली जा सकती है। साथ ही, नारियल के बाग में खाली पड़ी जमीन में काली मिर्च, इलायची या दूसरी मसाला फसलों की खेती करके अतिरिक्त आय भी अर्जित की जा सकती है।


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इन दिनों भारत के साथ ही विदेशी बाजारों में साबुत नारियल तथा नारियल के तेल की जबरदस्त मांग है। साथ ही, इसकी मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे भविष्य में किसानों के पास इस खेती से अच्छी कमाई करने का मौका होगा।
यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

साल 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार मिलेट्स के क्षेत्रफल को बढ़ाएगी। प्रदेश सरकार इस रकबे को 11 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 25 लाख तक करेगी। राज्य सरकार ने अपने स्तर से तैयारियों का शुभारंभ क्र दिया है। आने वाले साल 2023 को दुनिया मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाएगी। मिलेट्स वर्ष मनाए जाने की पहल एवं इसकी शुरुआत में भारत सरकार की अहम भूमिका रही है। भारत में मिलेट्स का उत्पादन अन्य सभी देशों से अधिक होता है। देश का मोटा अनाज पूरी दुनिया में अपना एक विशेष स्थान रखता है। इसी वजह से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी मोटे अनाज को उत्सव के तौर पर मनाकर देश की प्रसिद्ध को दुनियाभर में फैलाना चाहते हैं। कुछ ही दिन पहले मोदी जी ने दिल्ली में आयोजित हुए एक कार्यक्रम में मोटे अनाज का बना हुआ खाना खाया था। भारत के विभिन्न राज्यों में मोटा अनाज का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। मिलेट्स इयर आने की वजह से उत्तर प्रदेश राज्य में मोटे अनाज के उत्पादन का क्षेत्रफल बाद गया है।

उत्तर प्रदेश राज्य कितने हैक्टेयर में करेगा मोटे अनाज का उत्पादन

खबरों के मुताबिक, प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने मिलेट्स इयर के संबंध में राज्य के कृषि विभाग के अधिकारीयों को बुलाकर इस विषय पर बैठक की है। इस बैठक में जिस मुख्य विषय पर चर्चा की गयी वह यह था, कि वर्तमान में 11 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज का उत्पादन हो रहा है। इसको साल 2023 में 25 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाए। हालाँकि लक्ष्य थोड़ा ज्यादा बड़ा है, विभाग के अधिकारी पहले से ही इस बात के लिए तैयारी में जुट जाएँ।


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उत्तर प्रदेश सरकार ने कितना लक्ष्य तय किया है

राज्य सरकार द्वारा अधीनस्थों को आगामी वर्ष में मोटे अनाज का क्षेत्रफल दोगुने से ज्यादा वृद्धि का आदेश दिया है। बतादें, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटे अनाज से संबंधित पहल को बेहद ही गहनता पूर्वक लिया गया है। साथ ही, इस विषय के लिए उत्तर प्रदेश सरकार भी काफी गंभीरता दिखा रही है। उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्रफल का इलाका 86 फीसद हैं। बतादें, कि इस रकबे में दलहन, तिलहन, धान, गेहूं का उत्पादन किया जाता जाती है।

कहाँ से खरीदेगी सरकार बीज

कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देेश दिया गया है, कि कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के अधिकारियों से संपर्क साधें। राज्य में बुआई हेतु मोटे अनाज के बीज की बेहतरीन व्यवस्था की जाए। सबसे पहली बार 18 जनपदों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बाजरा खरीदा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में कितना किया जायेगा अनाज का उत्पादन

उत्तर प्रदेश के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में मोटे अनाज की मुख्य फसलें जिनका अच्छा उत्पादन भी होता है, वह ज्वार एवं बाजरा हैं। महाराष्ट्र राजस्थान, उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर बाजरा का उत्पादन किया जाता है। क्षेत्रफलानुसार बात की जाए तो उत्तर प्रदेश 9 .04 लाख हेक्टेयर, महाराष्ट्र में 6.88, राजस्थान में 43.48 लाख हेक्टेयर में बाजरे का उत्पादन किया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य की पैदावार प्रति हेक्टेयर 2156 किलो ग्राम है। राजस्थान का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 1049 किलोग्राम एवं महाराष्ट्र की पैदावार की बात करें तो 955 किलो ग्राम है।

ज्वार के उत्पादन का क्षेत्रफल कितना बढ़ा है

राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में ज्वार का अच्छा खासा उत्पादन होता है। क्षेत्रफल के तौर पर कर्नाटक प्रति हेक्टेयर प्रति क्विंटल पैदावार के मामले में अव्वल स्थान है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ज्वार की पैदावार बढ़ाने के लिए काफी जोर दे रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 में 1.71 लाख हेक्टेयर उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन वर्ष 2023 में इसको 1.71 लाख हैक्टेयर से बढ़ाकर 2.24 लाख हेक्टेयर तक पहुँचा दिया है। इसी प्रकार सावां व कोदो का रकबा भी पहले से दोगुना कर दिया गया है।
एमपी सरकार का बड़ा कदम, किसानों को होगा जमकर फायदा

एमपी सरकार का बड़ा कदम, किसानों को होगा जमकर फायदा

एमपी सरकार ने किसानों के हित में एक बड़ा कदम उठाया है, जिसके तहत सरकार से एमएसपी (MSP) पर गेहूं बेचने वाले किसानों को फायदा मिलगा. दरअसल एमपी सरकार ऐसे किसानों को सीधा भुगतान उनके बैंक अकाउंट में करेगी. इसमें किसी व्यापारी और बिचौलियों की चिंता नहीं करनी पड़ेगी. यह फायदा रजिस्टर्ड किसानों को मिलेगा, जो बिना किसी गड़बड़ी के वाजिब दाम पा सकेंगे. एमपी समेत गुजरात में नये गेहूं की आवक अब शुरू हो चुकी है. लेकिन अभी भी गेहूं की खरीद में तेजी नहीं आई है. एमपी में इस बार किसानों से सरकार करीब 2 हजार 125 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं की खरीद करने जा रही है. बात राज्य की करें तो तीन हजार से ज्यादा केन्द्रों पर रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जानकारी के मुताबिक किसान न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर गेहूं बेचने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन किसान प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों में करवा सकते हैं. इसके लिए 50 रुपये का शुक्ल के साथ किसान एमपी ऑनलाइन, कॉमन सर्विस सेंटर या फिर लोकसेवा केन्द्रों पर भी रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं. इसकी सुविधा खुद एमपी सरकार ने मुहैया करवाई हुई है.

इन बातों को ना करें नजरअंदाज

  • रजिस्ट्रेशन के वक्त किसान को अपने गेहूं की बुवाई के रकबा और गेहूं की खरीद के लिए चुने हुए केंद्र की पूरी जानकारी देनी जरूरी होगी.
  • जो भी किसान एमएसपी पर गेहूं बेचेंगे, उसका भुगतान उन्हें सीधा उनके बैंक अकाउंट में किया जाएगा.
  • सरकार के इस कदम से किसी बिचौलिये और व्यापारी की दखलंदाजी नहीं रहेगी.
  • किसानों को बिना किसी गड़बड़ी के सीधा गेहूं बिक्री का पैसा मिल सकेगा.
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3,480 खुले रजिस्ट्रेशन सेंटर

जानकारी के मुताबिक एमपी में किसनों के रजिस्ट्रेशन के लिए कुल 3,480 रजिस्ट्रेशन सेंटर बनाए हैं. जहां जो भी किसान न्यूनतम समर्थन दामों में गेहूं बेचना चाहते हैं, उन सबके लिए रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है. हालांकि इससे पहले सरकार के गेहूं बेचने के अलग नियम थे. जिसमें किसानों को मोबाइल पर डेट मिलती थी और उसी के आधार ओर गेहूं बेचना जरूरी होता था. लेकिन नई व्यवस्था के बाद किसान किसी भी समय अपना गेहूं बेच सकते हैं. इस तरह से करवाएं रजिस्ट्रेशन कियोस्को, कॉमन सर्विस सेंटर, लोक सेवा केंद्र या फिर किसी भी साइबर कैफे पर जाकर किसान अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं. इसके अलाव किसान एक प्रार्थना पत्र देकर भी खुद रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं. रजिस्ट्रेशन के बाद किसान के मोबाइल नंबर पर ओटीपी आएगा. उसी ओटीपी के आधार पर किसानों की पहचान की जाएगी. इसके आलव अकिसनों का अपने बैक की सारी डिटेल्स भी देनी होगी, जिससे भुगतान उनके खाते पर करने में आसानी हो. अब यहां पर इस बात की भी जानकारी होनी जरूरी है कि, अगर गेहूं की बुवाई वाली जमीन किसी मृतक के नाम पर है, तो उस पर जो भी उत्तराधिकारी खेती कर रहा है, उसके नाम से रजिस्ट्रेशन किया जाएगा. एमपी सरकार ने रजिस्ट्रेशन की आखिरी डेट 28 फरवरी निर्धारित की है.